Rani Laxmi Bai ( The queen of Jhansi )
Hello friends! Welcome back to Vatsala Shukla's blogs. sorry for being a bit late today. As we all know that today is international hindi day So here is one of my hindi poems based on the life story of one of the greatest warriors of the first war of Indian independence, Rani Laxmi Bai.
I have described the incidents that took place in her life in this poem of mine.
Hope you all like it.❤️
सुनो कथा एक रानी की
लक्ष्मी बाई मर्दानी की,
स्वतंत्रता के लिए जो आगे आईं
उन्हीं वीरांगना महारानी की।
जन्म हुआ वाराणसी में
रानी बन झांसी वह आईं,
बनी महारानी झांसी की
वह लक्ष्मी बई कहलाई।
बालपन से ही शौक थे उनके
व्यूह भेदना और करना वार,
बड़ी होकर मर्दानी कहलाई
क्योंकि सह पाईं वह अनेकों प्रहार।
खिल उठा था भाग्य झांसी का
जब पाई उसने ऐसी रानी थी,
जीवन के एक मात्र लक्ष्य में
जिन्हें भारत को स्वतंत्रता दिलानी थी।
तलवार की झनकाहट सुनते कानो को
चूडियाँ की खनक न भाई,
कालचक्र का पहिया घूमा
रानी विधवा हो आईं।
देख लावारिस झाँसी को
फिरंगियों की नजर उस पर आई,
झाँसी हड़प लेने की लालच
अंग्रजों के मन में छाई।
कानून के नाम पे हड़प लिया
अंग्रजों ने झाँसी को,
रानी का क्रोध बढ़ आया
देख तड़पता हर वासी को।
यह देख लड़ने निकलीं
किया अकेले अनेकों पर वार,
झाँसी, काल्पी सहित
ग्वालियर पर भी जमाया मराठाओं का अधिकार।
इतने में भी रानी का मन
शांत न हो पाया था,
शिवाजी के स्वप्न पूर्ती का जिम्मा
उन्होंनें अपने सर जो उठाया था।
भारत को ब्रिटिश राज्य से
स्वतंत्र उन्हें कराना था,
प्रत्येक नगर में जा-जाकर
ब्रिटिशों को हराना था।
निकल पडी़ं वह रणभूमि में
सखियों तथा सेना के संग,
लडी़ं इतनी वीरता से वह कि
आने ना दिया शिक्षकों पे कलंक।
एक भी मर्द मर्दनी के खमुख
तनिक देर भी ना टिक पाया था,
यह समाचार सुन ह्यू रोज़ भी
रणभूमि में आया था।
देख पराक्रम मर्दानी का
ह्यू रोज़ भी अचंभित खड़ा था,
समक्ष रानी के अनेक फिरंगी
धराशायी होकर पड़ा था।
खड़ा अचंभित सोच रहा था
काली थीं या दुर्गा की अवतार,
रणचंडी सी जो कर रहीं थीं
अंग्रेजों पर वार पे वार।
इतने में रानी को पीछे से
एक अंग्रेज ने गोली मारी,
तब जाकर कुछ सहमी थी
अंग्रेजों पर भारी एक नारी।
गोली लगने के बाद भी
अंग्रेजों पर तबाही जारी थी,
तभी ह्यू रोज़ के आदेश पर
रानी को घेरी सेना सारी थी।
ईधर रानी का घोडा़ भी
सीधे स्वर्ग सिधार गया,
फिरभी रानी का आत्मबल देख
ह्यू रोज़ मन ही मन उनसे हार गया।
तभी रानी पर अंग्रेजों ने
करी गोलियों की बौछार थी,
यह स्वतंत्रता की ओर एक चरण था
नाकि रानी की हार थी।
यहीं समाप्त होती है
एक वीरांगना की गाथा,
जिसके जय-जयकार के गीत
प्रत्येक कवि है गाता।
रानी ने ही तो सबके मन में
स्वतंत्रता की ज्योत जलाई थी,
उनसे ही प्रेरित हो कर
लोगों ने यह क्रांति आगे बढ़ाई थी।
ह्यू रोज़ को प्रभावित करने वाली
वही एक महारानी थीं,
अपनी आत्मकथा में उसने लिख डाला
'यदी विद्रोहियों में कोई मर्दानी थी तो वो झाँसी वाली रानी थी'।
So that was all about my poem.
Hope you all liked it.
Thanks for reading my blog bye!! 👋 👋
Very nice 😊❤️
ReplyDeleteसुंदर कविता। भावपूर्ण ❤️❤️
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